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baagbani kheti chhatarpur madhya pradesh millionsite.blogspot.com (आमले की खेती छतरपुर मध्य प्रदेश)

भाइयों नमस्कार। हम बात करेंगे मध्यप्रदेश में को जाने वाले आंवला(aamla) की kheti के बारे में जिससे किसान लाखों की कमाई कर सकते हैं। जिन किसान भाइयों के पास में अन्य फसलों के लिए पानी या जमीन की कमी है। तो किसान बागवानी में रुचि ले सकते हैं। बागवानी एक ऐसी ऐसी kheti की पद्धति जिससे किसान कम समय में,कम बजट में अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते है। जिसकी डिमांड भारत सहित दुनियाभर के मार्केट में हैं। बात कर लेते हैं आंवला(aamla) की खेती के बारे में आज भारत देश के लाखों उन्नतशील किसान बागवानी खेती करके लाखों रुपए कमा रहे हैं। क्यों ना किसान भाइयों हम भी आगे आकर बागवानी(baagbani) जैसी फसलों का लाभ लें और अपनी आमदनी को बढ़ाएं। अक्सर किसान भाई पूंजी को लेकर काफी परेशान रहते है। एसी स्तिथि में किसान 100-150 पौधे लगाने के साथ अन्य फसलों को भी उगा सकते हैं।बात है बस समझ की।

Table of content:-

  • 1.1- आंवला के बारे में सामान्य परिचय 
  • 1.2- क्षेत्र  वितरण 
  • 1.3- आंवले का उपयोग 
  • 1.4- खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 
  • 1.5- आंवले की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
  • 1.6- आमले की विभिन्न प्रकार की किस्में 
  • 1.7- खाद एवं उर्वरक 
  • 1.8- आंवले का जैविक उत्पादन  
  • 1.9- सिंचाई की पद्धति 
  • 2.1- पुष्पन एवं फलन वृद्धि 
  • 2.2- पौध संरक्षण 
  • 2.3- परिपक्वता तोड़ाई पैकिंग एवं भंडारण
  • 2.4- कुल कितनी आमदनी होगी

  • आंवले का सामान्य परिचय-


आंवला(aamla) भारतीय मूल का एक महत्वपूर्ण फल है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के नामो से जाना जाता है। हिंदी में आंवला, संस्कृत में धात्री,बंगाली एवं उड़िया में अमला या आमलकी, तमिल एवं मलयालम में नेल्ली, गुरुमुखी में अमोल फल तथा अंग्रेजी में amblica आदि नामों से जाना जाता है।अपने अद्वितीय औषधीय एवं पोषक गुणों के कारण भारतीय पौराणिक साहित्य जैसे वेद, स्कंद पुराण,शिव पुराण, पदम पुराण, रामायण कादंबरी आदि में इसका वर्णन मिलता है। महर्षि चरक ने इस फल को जीवन धात्री अथवा अमृत फल के नाम से उजागर किया है। अमृत फल तथा कल्पवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है।

  • क्षेत्र वितरण-

आंवले(aamla) के प्राकृतिक रूप से वृक्ष भारत-श्रीलंका, क्यूबा, हवाई फ्लोरिडा, iran-iraq, पाकिस्तान, या चीन आदि में उगाए जाते हैं,परंतु इसकी खेती अपने भारत देश में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रचलित है। मध्य प्रदेश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर आंवले(aamla) की खेती की जा रही है और किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं।

  • आंवले का उपयोग-

आंवले के पौधे के प्रत्येक भाग का आर्थिक महत्व है। इसके फलों में विटामिन c की अत्यधिक मात्रा पाई जाती।इसके अतिरिक्त आंवले के फल में लवण, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, लोह, एवं अन्य विटामिन के धनी होते हैं। इसका फल शीतलता दायक एवं मुद्रांक और मृदु रेचक होता है।एक चम्मच आंवले के रस को यदि शहद के साथ मिलाकर सेवन किया जाए तो इससे कई प्रकार के प्रकार रोग जैसे क्षय रोग, दमा, खून का बहना, मधुमेह,खून की कमी,स्मरण शक्ति की दुर्बलता के अनुसार अवसादन मस्तिष्क के विकार जैसी बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है।

  • जलवायु की आवश्यकता-

आंवला एक ऐसा पौधा है, जहां ठंडी एवं गर्मी स्पष्ट रूप से पड़ती है,बहा पर इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। बुंदेलखंड का क्षेत्र आंवले की खेती के लिए बेहतर माना जाता है, परंतु किसानों को बागवानी के प्रति सुझाव देने की अत्यधिक कमी जानी जाती है। कई ऐसे सक्षम किसान जिन्हें बागवानी के लाभ के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी है। आज के समय में छोटी जमीन से लाखों पैसे कमा रहे हैं।

  • भूमि की उपलब्धता -

आंवला एक ऐसा पेड़ है,जो बलुई भूमि से लेकर चिकनी मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। गहरी(काली) और बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। मैदान जहा पानी का स्तर काफी ऊंचा हो इसकी खेती हेतु अनुपयुक्त पाई गई हैं। यानी,मतलब यह हुआ कि जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है। आंवले के लिहाज से इस क्षेत्र में आंवले की फसल की पैदावार की अपार संभावना है।(बुंदेलखंड)

  • विभिन्न प्रकार की फसलें या किस्में-

पूर्व के समय में आंवला की तीन प्रमुख किस्में जैसे बनारसी, फ्रांसिस एवं चकिया हुआ करती थी। इनकी खूबिया एवं कमियां रही है। आज के समय में कई ऐसी उन्नत किस्म के आंवले के पेड़ है, जो भारतवर्ष में उगाए जा रहे हैं।

  • कंचन एन ए 4-

यह चकिया किस्म में से चयनित किस्म है।मादा फूलों की संख्या अधिक होने के कारण या अधिक फलक नियमित रूप से देती है। फल मध्यम आकार के गोल एवं हल्के पीले रंग के होते एवं अन्य परिरक्षक पदार्थ बनाने हेतु औद्योगिक इकाइयों द्वारा ज्यादातर पसंद की जाती है।

नरेंद्र आंवला 6-(narendra aamla -6)

चकिया किस्म से चयनित किस्म में से एक है,जो मध्यम समय मैं पककर तैयार हो जाता है। पेड़ फैलाव के लिए अधिक उत्पादन देने वाले होते हैं। फलों का आकार मध्यम से बड़ा गोल, चिकनी,हरी,पीली चमकदार एवम आकर्षक गुदा आदि खूबियों से भरा हुआ है।किस्म में मुरब्बा जैम एवं कैंडी बनाने हेतु उपयुक्त पाई जाती है।

  • पौधरोपण की विधि या कलम बंधन-

कलम के द्वारा तैयार पौधे को जुलाई से अगस्त ,सितंबर के कुछ हफ्तों तक एवम सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने पर फरवरी के महीने में रोपाई करते हैं। पौधों की रोपाई वर्गाकार विधि से करते हैं,जिसमें पौधों से पौधा एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी बराबर रखी जाती है। कतार के बीच में एक अन्य पौधा भी लगाया जा सकता है। इस विधि को पूरक विधियां क्वीनकंस भी कहते हैं। पौधे लगाने के लिए एक कतार में 10x10 या 10x12 फीट की दूरी पर गड्ढे करने चाहिए। 2x2x2 फीट का गड्ढा खोदकर 5-10 दिन के लिए छोड़ दें। गड्ढे में 10-15 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद,1किलोग्राम नीम की खली,500 ग्राम ट्राईकोडर्मा पाउडर को मिला दे,ताकि कीडे-मकोड़े का प्रकोप न रहे। इसको करने के बाद 10 दिन के लिए गड्ढे को खुला छोड़ दे।

  • आंवले के पौधे के छटाई का समय-

आंवले के पौधे को मध्यम ऊंचाई तक विकसित करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। दोनों को जमीन की सतह से लगभग 75 सेंटीमीटर से 1 मीटर तक अकेले बढ़ने देना चाहिए।  इसके उपरांत अन्य अनावश्यक शाखाओं को निकालते रहना चाहिए। जिससे पौधों के ढांचे का भली प्रकार से विकास हो सके। पौधों को रूपांतरित की प्रणाली के अनुसार साधना चाहिए।

  • आवले का जैविक उत्पादन-

आज के समय में आंवले के फल का उपयोग स्वास्थ्य सुधार एवं औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। अतः इसका जैविक उत्पादन बड़ा महत्वपूर्ण है। इस प्रकार से उत्पादित आंवले से तैयार उत्पादन की गुणवत्ता युक्त होने के कारण घरेलू एवं विदेशी बाजारों में अधिक सराहे जाते है।

  • कितने समय अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए-


आमले का पौधा काफी हद तक सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। बुंदेलखंड एरिया एक ऐसा एरिया है,जहां पर पानी की किल्लत साफ रूप से देखी जा सकती है।भारत सरकार की महत्वकांक्षी नदी जोड़ो परियोजना केन बेतवा नहर परियोजना को पूर्ण होने में अभी समय लग सकता है।जिसका इंतजार बुंदेलखंड बसियो को बेसब्री से इंतजार है। इस स्तिथि में किसान भाई बागवानी फसल के साथ अन्य उद्यानिकी फसलों को कर सकते है।

  • तुड़ाई का समय एवम तरीका -

आंवले के फलों की तोड़ाई हाथ से करते हैं, परंतु यह क्रिया बड़े वृक्ष में संभव नहीं होने के कारण बांस से बनी सीढ़ियों से चलकर तुड़ाई की जा सकती है। फलों को प्रातः काल में तोड़ना चाहिए एवं प्लास्टिक की क्रेत में रखना चाहिए।फलों को तोड़ते समय जमीन से नहीं रगड़ना चाहिए अन्यथा चोटिल हुए फल पैकिंग एवं भंडारण के समय अन्य फलों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

ध्यान रहे आंवले में परागण होता है,यानी अच्छी पैदावार के लिए 2:2:1 अनुपात पर अलग -अलग किस्मों का चयन करना चाहिए। अर्थात् नरेंद्र7 किस्म के 80 पौधे, कृष्णा किस्म के 80 पौधे और कंचन किस्म के 40 पौधे की किस्मों को लगाना जरूरी होता है।(1 एकड़ के लिए पौधों की संख्या व अनुपात 2:2:1) यानी 1 एकड़ के लिए 200 पौधे।

  • भंडारण क्षमता-


भंडारण क्षमता, आंवले के भंडारण का मुख्य उद्देश संसाधन हेतु उसकी उपलब्धता को बढ़ाना है। किस्मों के अनुसार परिपक्व फलों को 6 से 9 दिनों तक कम ऊर्जा वाली सीट कक्षाओं में रखकर बढ़ाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त आंवले के फलों को सीट नमक में घोलकर रखकर 75 दिनों तक सामान्य तापक्रम पर भंडारे किया जा सकता है।

  • मुनाफे की बात-

अब बात कर लेते हैं,मुनाफे की आंवले की खेती से कितना मुनाफा कमाया जा सकता है। आंवले का विक्रय मूल्य कम से कम ₹800 से लेकर ₹4000 प्रति क्विंटल तक रहता है। प्रति एकड़ क्षेत्र से 80,000 से लेकर ₹400000 प्राप्त किए जा सकते हैं।(2000/per क्विंटल के हिसाब से)

  • सार:-

दोस्तों हमें और हमारी टीम को आशा है,कि आपको आंवले की खेती से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी मिल गई होगी। यदि यह जानकारी आपके लिए सुविधाजनक जानी गई हो,तो कमेंट सेक्शन में कमेंट करके जरूर बताएं और अन्य सुझाव देने के लिए भी कमेंट करना ना भूलें।

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