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Khajuraho tourist place,kandariya mahadev temple(टूरिस्ट प्लेस खजुराहो महादेव कंदरिया मंदिर, tourist place near by Khajuraho)

खजुराहो- (चंदेल वंश की राजधानी)   

 (khajuraho capital of chandel linage)-

Khajuraho भारत के मध्य प्रदेश प्रांत में स्थित एक प्रमुख शहर है, जो अपने प्राचीन एवं मध्यकालीन मंदिरों के लिए विश्व विख्यात है। यह मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। खजुराहो को प्राचीन काल में खजूरपुरा और खजूरी के नाम से भी जाना जाता था। यहां many quantity में प्राचीन हिंदू और जैन मंदिर है। मंदिरों का शहर खजुराहो पूरे विश्व में मुड़े हुए पत्थरों से निर्मित मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। खजुराहो को इसके अलंकृत मंदिरों की वजह से जाना जाता है, जो कि देश के सर्वोत्कृष्ट मध्यकालीन स्मारक हैं।



 भारत के अलावा दुनिया भर के आगंतुक और पर्यटक प्रेम की अप्रतिम सौंदर्य के प्रति को देखने के लिए निरंतर आते रहते हैं। हिंदू कला व संस्कृति को शिल्पी यों ने इस शहर के पत्थरों पर मध्यकाल में उत्तीर्ण किया था। विभिन्न कामनाओं को इन मंदिरों में बेहद खूबसूरती के उभार गया है। खजुराहो का मंदिर एक सभ्य संदर्भ है। जीवंत संस्कृत की 1000 आवाजें जो भ्रम से अलग हो रही हैं।

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खजुराहो ग्रुप ऑफ़ मॉन्यूमेंट्स समय और स्थान की अंतिम बिंदु की तरह है। जो मानव संरचना और संवेदना को संयुक्त करती सामाजिक संरचनाओं की भरपाई करती है। जो हमारे पास है, सब रोमांच मय है। मिट्टी से पैदा हुआ एक कैनवास है, जो अपने शुद्धतम रूप में जीवन का चित्रण का जश्न मनाने वाली कढ़ी के लोगों पर फैला हुआ है। 

                           देश-                                    भारत 

       राज्य-                                  मध्य प्रदेश 

       जिला-                                 छतरपुर 

       जनसंख्या-                           19282 

             (2001 जनगणना के अनुसार)

चंदेल वंश द्वारा 950 से 1050 ce के बीच निर्मित खजुराहो मंदिर भारतीय कला के सबसे महत्वपूर्ण नमूनों में से एक है। हिंदू और जैन मंदिरों के आकार लेने में लगभग 100 साल लगे मूल रूप से पचासी मंदिरों का एक संग्रह संख्या 25 तक नीचे आ गई है। 

यूनेस्को विश्व विरासत- विश्व धरोहर के रूप में खजुराहो को सामिल किया गया है। हम सभी भारतीयों को अपनी धरोहर पर अभिमान है।

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स्थल(place)-

मंदिर परिसर को 3 छेत्रों में विभाजित किया गया है। पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी समूह।

पश्चिमी समूह में अधिकांश सा मंदिर है। पूर्वी में नक्काशीदार जैन मंदिर है। जबकि दक्षिणी समूह में केवल कुछ मंदिर हैं। जैन मंदिर चंदेल शासन के दौरान क्षेत्र में फलते फूलते जैन धर्म के लिए बनाए गए थे। पश्चिमी और दक्षिणी भाग के विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इनमें से आठ नो 601 गणेश को और सूर्य को जबकि 3 तीर्थंकरों को है।कंदरिया महादेव मंदिर उन सभी मंदिरों में सबसे बड़ा है।

इतिहास(history)-

खजुराहो का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना है। अपने क्षेत्र में खजुराहो की सबसे पुरानी ज्ञात शक्ति वत्स थी। उनके उत्तराधिकारियों में मौर्य, सॉन्ग,पद्मावती, नागा, वाकाटक वंश, गुप्त, पुष्यभूति राजवंश और गुर्जर प्रतिहार राजवंश शामिल थे। विशेष रूप से गुप्त काल के दौरान था,कि इस चित्र में वास्तुकला और कला का विकास शुरू हुआ, हालांकि उनके उत्तराधिकारीयों ने कलात्मक परंपरा जारी रखी। यह शहर चंदेल समाज की प्रथम राजधानी थी। चंदेल वंश और खजुराहो के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य काल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले गुर्जर राजा थे। वे अपने आप को चंद्रवंशी मानते थे।

 चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवीं शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का 9 ईस्वी से 10 ईसवी के राजाओं द्वारा किया गया मंदिरों के निर्माण ने अपनी राजधानी स्थानांतरित कर दी, लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा। काल के दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो के महोबा खंड में चंदेल की उत्पत्ति का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है, कि काशी की राजधानी थी।

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एक प्रचलित कथा(one popular-   story)-


1 दिन में गर्मियों की रात में कमल पुष्पों से भरे हुए तालाब में एक स्त्री स्नान कर रही थी। उसकी सुंदरता को देखकर चंद्र भगवान उन पर मोहित हो गए। मानव रूप धारण कर धरती पर आ गए और हेमवती का हरण कर लिया। दुर्भाग्य से हेमवती विधवा थी वह एक बच्चे की मां थी और अपना जीवन नष्ट करने और चरित्र हनन का आरोप लगाया। अपनी गलती के पश्चाताप लिए चंद्रदेव ने पति के रूप में वचन दिया, कि वह एक वीर पुत्र की मां बनेगी। चंद्रदेव ने कहा कि वह अपने पुत्र को खजूरी ले जाएं। उन्होंने कहा कि वह एक महान राजा बनेगा और झीलों से घिरे मंदिरों का निर्माण कराएगा। 

राजा बनने पर तुम्हारा पुत्र एक विशाल यज्ञ का आयोजन करेगा जिससे तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। चंद्रदेव के निर्देशों का पालन करते हुए पुत्र को जन्म देने के लिए अपना घर छोड़ दिया और एक छोटे से गांव में पुत्र को जन्म दिया। हेमवती का पुत्र बर्मन अपने पिता के समान तेजस्वी बहादुर और शक्तिशाली था। 16 साल की उम्र में वह बिना हथियार के शेर को भी पराजित कर सकता था।

 असाधारण वीरता को देखकर चंद्र देव की आराधना की। जिन्होंने पारस पत्थर भेंट किया और उसे खजुराहो का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोने में बदला जा सकता था। उद्यानों से आच्छादित खजुराहो में मंदिरों का निर्माण कराया और एक यज्ञ का आयोजन किया । जिसने हेमवती को मुक्त कर दिया और उसके अधिकारियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया।

दर्शनीय स्थल(scenic spot)-

अब बात कर लेते है,खजुराहो के दर्शनीय स्थलों के बारे में संपूर्ण धरोहर का वर्णन तो नही किया जा सकता,लेकिन कुछ जगहों पर नजर डालते है।

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पश्चिमी समूह(southen gruop)-

जब ब्रिटिश इंजीनियर पीएस भारत ने खजुराहो के मंदिरों की खोज की तब से मंदिरों की एक विशाल समूह के पश्चिमी समूह के नाम से जाना जाता है। यह खजुराहो के सबसे आकर्षक  स्थानों में से एक है। इस स्थान को यूनेस्को ने 1986 में विश्व विरासत की सूची में शामिल भी किया। इसका मतलब यह हुआ कि अब सारा विश्व इसकी मरम्मत और देखभाल के लिए उत्तरदाई होगा। शिव सागर के नजदीक स्थित पश्चिम के मंदिर  दर्शन के साथ अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए। एक ऑडियो हेडसेट यहां से प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा ₹200 से ₹300 के बीच लोगों के लिए अन्य सेवाएं भी ली जा सकती हैं। 

खजुराहो को साइकिल के माध्यम से अच्छी तरह से देखा जा सकता है। यह साइकिल ₹20 प्रति घंटे की दर से स्टैंड से प्राप्त की जा सकती हैं। इतिहासकारों का मत है कि हिंदुओं के प्रति भक्ति भाव दर्शाया गया है। लक्ष्मण मंदिर उच्च कोटि का मंदिर है। भगवान विष्णु को बैठाया हुआ दिखाया गया है। 4 फुट ऊंची विष्णु जी को प्रतिमा समर्पित किए हैं और के रूप में जीवन की क्रियाकलापों को दिखाया गया है।

महादेव कंदरिया मंदिर-(mahadev kandariya temple)-

 कंदरिया महादेव मंदिर पश्चिमी समूह के मंदिरों में विशालतम या अपनी भव्यता और संगीत मेहता के कारण प्रसिद्ध है।विशाल मंदिर का निर्माण महाचंद्र राजा विद्याधर ने महमूद गजनवी पर अपनी विजय के उपलक्ष में किया था। लगभग 1050 ईसवी में इस मंदिर को बनाया गया। यह एक विशाल शिव मंदिर है। तांत्रिक पक्ष को खुश रखने के लिए इसका निर्माण किया गया था। कंदरिया महादेव मंदिर लगभग 107 फुट ऊंचा है।

देवी जगदंबा मंदिर(devi jagdamba temple)-

 कंदरिया महादेव मंदिर के चबूतरे के उत्तर में जगदंबा देवी मंदिर है। जगदंबा देवी का मंदिर पहले भगवान विष्णु को समर्पित था और इसका निर्माण 1000 से 1225 ईसीबी के बीच किया गया था। यहां छतरपुर के महाराजा ने देवी पार्वती की प्रतिमा स्थापित कराई थी। इसी कारण इसे देवी जगदंबा मंदिर कहते हैं। यहां पर उत्कीर्ण मैथुन मूर्तियों में भावों की गहरी संवेदनशीलता शिल्प की विशेषता है।

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सूर्य मंदिर(चित्रगुप्त)(surya temple)-

 मंदिर खजुराहो की एकमात्र मंदिर है जिसका नाम चित्रगुप्त मंदिर एक ही चबूतरे पर स्थित चौथा मंदिर है। इसका निर्माण विद्याधर के काल में हुआ था। इसमें भगवान सूर्य की 7 फुट ऊंची प्रतिमा कवच धारण किए हुए स्थित है। इसमें भगवान सूर्य सात घोड़ों के रथ पर सवार है। मंदिर की अन्य विशेषता यह है, कि इसमें एक मूर्तिकार को काम करते हुए कुर्सी पर बैठा दिखाया गया है। इसके अलावा एक 11 सिर वाली विष्णु की मूर्ति दक्षिण की दीवार पर स्थित है। 

बगीचे के रास्ते में पूर्व की ओर पार्वती मंदिर स्थित एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर को छतरपुर के महाराजा प्रताप सिंह द्वारा 1843 के बीच में बनवाया गया था। इसमें पार्वती की आकृति को भगवान से संबंधित है। यह मंदिर राजा द्वारा 999 बनवाया गया था। अप्सराएं संगीत का कार्यक्रम एक लिंगम को इस मंदिर में दर्शाया गया है।

विश्वनाथ मंदिर(viswanath temple)-

 मंदिरों में अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वनाथ मंदिर का निर्माण काल सन 1002 से 1003 ईसवी है। पश्चिम समूह की जगती पर स्थित यह मंदिर अति सुंदर मंदिरों में से एक है। 

प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम शाम को इस परिसर में अमिताभ बच्चन की आवाज में लाइट एवं साउंड कार्यक्रम प्रदर्शित किया जाता है। यह कार्यक्रम खजुराहो के इतिहास को जीवंत कर देता है। इस कार्यक्रम का आनंद उठाने के लिए भारतीय नागरिक से प्रवेश शुल्क ₹50 और विदेशियों से ₹200 तक शुल्क लिया जाता है। सितंबर से फरवरी के बीच अंग्रेजी में यह कार्यक्रम शुरु होता है।

पूर्वी समूह(easter group)-

 पूर्वी समूह के मंदिरों को दो विषम समूह में बांटा गया है जिनकी उपस्थिति आज के गांधी चौक से आरंभ हो जाती है। इसके प्रथम 4 मंदिरों का समूह प्राचीन खजुराहो गांव के नजदीक है। दूसरे समूह में जैन मंदिर है, जो गांव के स्कूल के पीछे स्थित है।

जैन मंदिर(jain temple)-

 इन मंदिरों का समूह एक कंपाउंड में स्थित है। संप्रदाय ने बनवाया था या संप्रदाय ही इन मंदिरों की देखभाल करता है। विशाल मंदिर तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। आदिनाथ मंदिर पार्श्वनाथ मंदिर के उत्तर में स्थित जैन समूह का अंतिम आदिनाथ है। मंदिर 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर में यज्ञ दंपत्ति की आकर्षक मूर्ति चित्रित है।

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दक्षिणी समूह- (southen group)-

इस भाग में जो मंदिर है। एक भगवान शिव से संबंधित दुलादेव मंदिर है। दूसरा विष्णु से संबंधित है, जिसे चतुर्भुज मंदिर कहां जाता है। दुलादेव मंदिर खुद नदी के किनारे स्थित है। इसे 1130 ईसवी में मदन वर्मा द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर में खंडों पर मुद्दत धरण आकृतियां है। चतुर्भुज मंदिर का निर्माण 1100 ईसवी में किया गया था। इसके गर्भ में 9 फुट ऊंची विष्णु की प्रतिमा को संत के बीच में दिखाया गया है। इस समूह के मंदिर को देखने के लिए दोपहर का समय उत्तम माना जाता है। दोपहर में पढ़ने वाली सूर्य की रोशनी की मूर्तियों को आकर्षक बनाता है।

चतुर्भुज मंदिर(Chaturbhuj temple)-

 यह मंदिर जटकरा ग्राम से लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। संगीत मंडप अंतराल के साथ-साथ गर्भ ग्रह है। मंदिर का निर्माण काल जवारी तथा दुलादेव मंदिर के निर्माण काल के मध्य माना जाता है।

संग्रहालय खजुराहो के विशाल मंदिरों को टेढ़ी गर्दन से देखने के बाद तीन संख्याओं को देखा जा सकता है। वेस्टर्न ग्रुप के विपरीत स्थित भारतीय पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में मूर्तियों को अपनी आंख के स्तर पर देखा जा सकता है। पुरातत्व विभाग के इस संग्रहालय को भागो में विभाजित किया गया है। जिनमें से वो वैष्णव, जैन और 100 से अधिक विभिन्न आकारों की मूर्तियां है। 

संग्रहालय में विशाल मूर्तियों के समूह को काम करते हुए दिखाया गया है। इसमें विष्णु की प्रतिमा को मुंह पर अंगुली रखते चुप रहने के भाव के साथ दिखाया गया है। संग्रहालय में चार पैरों वाली शिव की एक सुंदर मूर्ति है। जैन संग्रहालय में लगभग 100 मूर्तियां हैं, जबकि ट्राईबल निकटवर्ती दर्शनीय स्थल खजुराहो की आस पास अनेक ऐसी स्थानीय पर्यटन और ब्राह्मण के लिहाज से काफी प्रसिद्ध हैं।

निकटवर्ती दर्शनीय स्थल(near by turist place)-

 खजुराहो के आस- पास अनेक दर्शनीय स्थल है,जो पर्यटन और भ्रमण के लिहाज से काफी प्रसिद्ध हैं। कालिंजर और अजयगढ़ मैदानी इलाकों से थोड़ा आगे बढ़कर विंध्य पहाड़ी है। समय आ जाएगा और कालिंजर के किले हैं। 105 किलोमीटर दूर है कालिंजर का किला। यह एक प्राचीन किला है। प्राचीन काल में यह शिव भक्तों की कुटी थी। इसे महाभारत और पुराणों के पवित्र स्थल की सूची में शामिल किया गया था। इस किले को मिलाकर कालिंजर का किला बना।

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खरीददारी(shopping 🛍️)-

खजुराहो में अनेक छोटी-छोटी दुकानें हैं, जो लोहे,तांबे और पत्थर की गहने बेचती है। यहां विशेष रूप से पत्थरों और धातुओं पर उकेरी गई कामसूत्र की भंगिमा,तो सीधे यहा की दुकानों से खरीदा जा सकता है। मृगनैनी, सरकारी एंपोरियम की शटर अधिकांश समय गिरे रहते हैं। दिसंबर में राज्य के ट्रायल संग्रहालय में कारीगरों की एक कार्यशाला आयोजित की जाती है। कार्यशाला से यहां की कारीगर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। उनकी अद्भुत कला के नमूनों को यहां से खरीदा जा सकता है।

आवागमन(transport)-

खजुराहो जाने के लिए अपनी सुविधा के अनुसार सड़क परिवहन को अपनाया जा सकता है।

वायु मार्ग(Airway)-

खजुराहो वायु मार्ग द्वारा दिल्ली, वाराणसी,आगरा और काठमांडू से जुड़ा हुआ है। खजुराहो एयरपोर्ट शहर से 3 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग(railway 🚂)-

 खजुराहो रेलवे स्टेशन से दिल्ली,आगरा, जयपुर, उदयपुर, वाराणसी, भोपाल, इंदौर,उज्जैन के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। दिल्ली और मुंबई से आने वाले पर्यटकों के लिए झांसी  सुविधाजनक रेलवे स्टेशन है, जबकि चेन्नई वाराणसी से आने वालो के लिए सतना अधिक सुविधाजनक होगा। नजदीकी और सुविधाजनक रेलवे स्टेशन है। टैक्सी या बस के माध्यम से खजुराहो पहुंचा जा सकता है। सड़कों की स्थिति बहुत अच्छी है।

सड़क मार्ग(roadway)-

खजुराहो, महोबा, हरपालपुर, छतरपुर, सतना, पन्ना, झांसी, आगरा, ग्वालियर, सागर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, वाराणसी और इलाहाबाद से नियमित सीधा जुड़ा हुआ है। दिल्ली के राष्ट्रीय राजमार्ग से पलवल, कोसी, कलां, मथुरा होते हुए आगरा पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 4 से धौलपुर और मुरैना के रास्ते ग्वालियर जाया जा सकता है। उसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग झांसी, मऊरानीपुर और छतरपुर से होते हुए बमीठा और वहां से राज्य राजमार्ग की सड़क से खजुराहो पहुंचा जा सकता है।

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Conclusion-

दोस्तों हमें आशा है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको विश्व पर्यटक नगरी खजुराहो से जुड़ी जानकारी मिल गई होगी। जानकारी कमेंट करके जरूर बताएं।

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